ओउम् नम:ओउम् – २०१३

सभी धर्मशास्र इस बात पर एक मत हैं कि ब्रह्मांड का आदि नाद  ओउम् है।

सम्पूर्ण ब्रह्मांड से सदा ॐ की ध्वनि ही नि:सृत होती  रहती है।

बाइबल का भी  कुछ इसी तरह का मत है और भारतीय धर्म ग्रंथ वेद,

पुराण एवं उपनिषद सभी में भी ॐ को ही परमपिता के सर्वश्रेष्ठ एवं 

सर्वप्रथम नाम के रूप में स्वीकारा गया है। यहाॅं तक कि निर्गुण संत कबीर ने  भी कहा है –

            ओ ओंकार आदि मैं जाना

          लिखि औ  मेटें ताहि ना माना

गुरु नानक ने ॐ के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा हैं- 

ओम् सत नाम  कर्ता पुरुष निभौं निर्वेर अकालमूर्त।

बौध्द  दर्शन में ‘ मणिपद् मेहुम ’ का जप बताया गया है, 

जिसका सार हैं कि ॐ मणिपुर चक्र में अवस्थित है। 

जैन  दर्शन में भी ॐ के महत्व को स्वीकार गया है।

तस्य वाचक: प्रणव: अर्थात उस  परमेश्वर का वाचक प्रणव है।

इस प्रकार प्रणव या ॐ एवं ब्रह्म में  कोई अंतर ही नहीं हैं।

प्रस्तुत पुस्तक  में ओउम् के महत्व और महिमा को  दर्शाते हुए  

मानव  जीवन  को एक नई दिशा प्रदान करने का प्रयास  किया  गया है।

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