यह उपन्यास रूज़बेह एन.भरुचा के प्रसिद्ध अंग्रेज़ी उपन्यास ‘द फ़क़ीर: द जर्नी कन्टीन्यूज़…’ का सरल हिन्दी रूपान्तरण है, जो मृत्यु के बाद जीवन को खोजती है।
इस कहानी में हास्य-विनोद एवं बहुत सरल तरीक़े से बताया गया है कि कैसे हम प्रार्थना की शक्ति के जरिए आत्मिक जगत में भी अपने देवदूतों, फ़रिश्तों, मार्गदर्शक़ों, मित्रों, परिवार के सदस्यों से मिल सकते हैं।
मनुष्य केवल अपना शरीर त्यागता है, जबकि अपनी भावनाओं और मानसिक बोझ को आत्मिक जगत में भी साथ ले जाता है। ईश्वर ने हमें स्वेच्छा प्रदान की है कि आत्मा की प्रगति के लिए हम स्वयं के अनुभव और विकल्पों का चयन करें। हर क़दम पर हमारे पास विकल्प हैं और हमारे द्वारा चुने हुए विकल्प ही प्रकाश की ओर हमारी यात्रा निर्धारित करते हैं। ईश्वरीय आस्था इस यात्रा को आसान बना देती है। ईश्वर दयालु हैं,लेकिन उन तक पहुँचने का रास्ता कठिन और मुश्किल है, केवल सरलता और मन की शुद्धि से उसे पार किया जा सकता है।
ईश्वर पर विश्वास और अपने गुरु में आस्था रखो,तो कष्टकारी समय भी पलक झपकते निकल जाता है। अपने भाग्य को प्रभु-इच्छा समझकर स्वीकारने वाला ही अपने देवगुरुओं का प्रिय होता है।
रुज़बेह एन.भरुचा अंग्रेज़ी के प्रतिष्ठित लेखक हैं।अंग्रेज़ी में इनके कई यात्रा वृतांत एवं उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं,
इसके अलावा डाॅक्यूमैंट्री फ़िल्मों के निर्माण में भी इन्होंने महत्वपूर्ण स्क्रिप्ट लेखन कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।