

Previous
Next
फ़क़ीर
२०१३
” गुरु गाेविन्द दाेऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दिया बताय।। ”
गुरु और गोविन्द दोनों खड़े हैं।मैं किसका चरण स्पर्श करूं?
गुरु जी ही बलिहारी हैं, जिन्हाेंने मुझे परमात्मा का पता बता दिया है।
यह उपन्यास रुज़बेह एन.भरुचा के प्रसिद्ध अंग्रेज़ी उपन्यास ‘द फ़क़ीर’
का सरस हिन्दी रूपान्तरण है, जिसमें न केवल गुरु की महिमा,वरन परोपकार
की भावना भी पाठक को अभिभूत करती है और यही उसके कल्याण मार्ग का
पथ बन सकता है।अत्यंत हृदयस्पर्शी एवं प्रेरणादायक यह पुस्तक निश्चय ही
मानव जीवन को एक नई दिशा प्रदान करने की शक्ति रखती है।
रुजबेह एन.भरुचा अंग्रेज़ी के प्रतिष्ठित लेखक हैं ।
अंग्रेज़ी में इनके कई यात्रा वृत्तांत एवं उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं,
इसके अलावा कई डाक्यूमैंटी फ़िल्मों के निर्माण में भी इन्होंने महत्वपूर्ण स्क्रिप्ट लेखन
कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है ।


Previous
Next
फ़क़ीर
२०१३
” गुरु गाेविन्द दाेऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दिया बताय।। ”
गुरु और गोविन्द दोनों खड़े हैं।मैं किसका चरण स्पर्श करूं?
गुरु जी ही बलिहारी हैं, जिन्हाेंने मुझे परमात्मा का पता बता दिया है।
यह उपन्यास रुज़बेह एन.भरुचा के प्रसिद्ध अंग्रेज़ी उपन्यास ‘द फ़क़ीर’
का सरस हिन्दी रूपान्तरण है, जिसमें न केवल गुरु की महिमा,वरन परोपकार
की भावना भी पाठक को अभिभूत करती है और यही उसके कल्याण मार्ग का
पथ बन सकता है।अत्यंत हृदयस्पर्शी एवं प्रेरणादायक यह पुस्तक निश्चय ही
मानव जीवन को एक नई दिशा प्रदान करने की शक्ति रखती है।
रुजबेह एन.भरुचा अंग्रेज़ी के प्रतिष्ठित लेखक हैं ।
अंग्रेज़ी में इनके कई यात्रा वृत्तांत एवं उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं,
इसके अलावा कई डाक्यूमैंटी फ़िल्मों के निर्माण में भी इन्होंने महत्वपूर्ण स्क्रिप्ट लेखन
कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है ।
ORDER NOW
Share Now
Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on google
Share on whatsapp
Share on print
Share on facebook
Facebook
Share on twitter
Twitter
Share on linkedin
LinkedIn
Share on google
Google+
Share on whatsapp
WhatsApp
Share on print
Print