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सलाखों की परछाइयाँ
२०१४
‘सलाखों की परछाइयाँ’ के माध्यम से भारतीय जेलों में रह रहे मां और बच्चे पर भावनात्मक रूप से प्रकाश डाला गया है। भारत के कई जेलों का दौरा करके लेखक ने वहां पर रह रही महिला कैदियों और उनके बच्चों से मुलाकात की है।इस मुलाकात के दौरान कैदियों की स्थिति,असुरक्षा,खुशी,उम्मीद और सपनों को उनके साथ बाँटा है।
कैदी,बच्चे,सामाजिक कार्यकर्त्ता,जेल अधिकारी,वकीलों से लिए गए साक्षात्कार पढ़ने में काफी रुचिकर हैं।यह पुस्तक आपको कहीं न कहीं उन समस्याओं के प्रति गंभीर बनाएगी,जो मानवीय दृष्टि से क्रूर हैं।
रुज़बेह नारी भरुचा की ‘द लास्ट मैरेथोन’और ‘देवीज एमेरेल्ड’ नामक पुस्तक जिस प्रकार आत्मा को झकझोरती है,उसी प्रकार उनको यह पुस्तक ‘सलाखों की परछाइयाँ’भी आपको झकझोरेगी।यह पुस्तक भारतीय जेलों में रह रहे मां और बच्चे पर आधारित है।भारत में पांच वर्ष तक के बच्चे किस प्रकार अपनी मां के साथ भारतीय जेलों में रहते हैं उसका विस्तृत वर्णन इस पुस्तक में है।———————————————
दैनिक ट्रिब्यून
लेखक ने मुलाकात के दौरान कैदियों की स्थिति,असुरक्षा,खुशी,उम्मीद और सपनों को उनके साथ बाँटा है।यह पुस्तक आपको कहीं न कहीं उन समस्याओं के प्रति गंभीर बनाती है जो मानवीय दृष्टि से क्रूर हैं।नि:संदेह यह पुस्तक आम आदमी को कहीं गहरे तक झकझोर देती है।पुस्तक की प्रस्तुति अत्यंत प्रभावशाली और मार्मिक है।


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२०१४
‘सलाखों की परछाइयाँ’ के माध्यम से भारतीय जेलों में रह रहे मां और बच्चे पर भावनात्मक रूप से प्रकाश डाला गया है। भारत के कई जेलों का दौरा करके लेखक ने वहां पर रह रही महिला कैदियों और उनके बच्चों से मुलाकात की है।इस मुलाकात के दौरान कैदियों की स्थिति,असुरक्षा,खुशी,उम्मीद और सपनों को उनके साथ बाँटा है।
कैदी,बच्चे,सामाजिक कार्यकर्त्ता,जेल अधिकारी,वकीलों से लिए गए साक्षात्कार पढ़ने में काफी रुचिकर हैं।यह पुस्तक आपको कहीं न कहीं उन समस्याओं के प्रति गंभीर बनाएगी,जो मानवीय दृष्टि से क्रूर हैं।
रुज़बेह नारी भरुचा की ‘द लास्ट मैरेथोन’और ‘देवीज एमेरेल्ड’ नामक पुस्तक जिस प्रकार आत्मा को झकझोरती है,उसी प्रकार उनको यह पुस्तक ‘सलाखों की परछाइयाँ’भी आपको झकझोरेगी।यह पुस्तक भारतीय जेलों में रह रहे मां और बच्चे पर आधारित है।भारत में पांच वर्ष तक के बच्चे किस प्रकार अपनी मां के साथ भारतीय जेलों में रहते हैं उसका विस्तृत वर्णन इस पुस्तक में है।———————————————
दैनिक ट्रिब्यून
लेखक ने मुलाकात के दौरान कैदियों की स्थिति,असुरक्षा,खुशी,उम्मीद और सपनों को उनके साथ बाँटा है।यह पुस्तक आपको कहीं न कहीं उन समस्याओं के प्रति गंभीर बनाती है जो मानवीय दृष्टि से क्रूर हैं।नि:संदेह यह पुस्तक आम आदमी को कहीं गहरे तक झकझोर देती है।पुस्तक की प्रस्तुति अत्यंत प्रभावशाली और मार्मिक है।
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